चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी...Trapped in time or lazy greed?
अगर कॉमिक्स फैंस की बात की जाए तो शायद ही कोई ऐसा कॉमिक्स फैन होगा जिसने चाचा चौधरी का नाम ना सुना हो। कॉमिक्स फैन ही क्यों, देश में अगर कॉमिक्स ना पढ़ने वाले व्यक्ति से भी कभी बात की जाए तो बहुत प्रबल संभावना है कि वह चाचा चौधरी के नाम से परिचित होगा। कुछ ऐसी बात थी चाचा चौधरी, साबू, बिल्लू, पिंकी, रमन इत्यादि किरदार रचने वाले हमारे प्राण साहब में, जिसकी वजह से उनके यहां किरदार अमर हो गए और सदा के लिए भारतीय कॉमिक्स के एक ब्रांड एंबेसडर के रूप में जाने जाने लगे, और शायद आने वाले कई दशकों तक यह नाम इसी तरह प्रसिद्ध रहेंगे।
इन किरदारों की लोकप्रियता के पीछे एक बहुत बड़ा कारण यह था की प्राण साहब के लिए की कहानियां बेहद सरल होती थी, कहानियों की लंबाई बेहद छोटी और कहानियों में एक innocence factor होता था जिसकी वजह से यह कहानी हर age group में पढ़ने योग्य होती थी।
आज प्राण साहब हमारे बीच में नहीं है लेकिन डायमंड कॉमिक्स प्रकाशन लगातार आज भी इन किरदारों की कॉमिक्स पब्लिश कर रहा है और मार्केट में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। किंतु क्या प्राण साहब के निधन के बाद डायमंड कॉमिक्स अभी भी उतनी ही अच्छी है? इसी प्रश्न का उत्तर जानने के लिए मैंने रेलवे स्टेशन के स्टॉल से चाचा चौधरी पिंकी और बिल्लू की एक-एक कॉमिक्स खरीदी और आज मैं completely unbiased होकर करूंगा इन कॉमिक्स का dissection।
डायमंड कॉमिक्स की जो सबसे खराब बात मुझे लगती है वह यह है कि किसी भी कॉमिक्स में लेखक, चित्रकार, इत्यादि का नाम तक mention नहीं किया जाता है। इसी वजह से मैं यह जानकारी पाने और साझा करने में असमर्थ हूं। इसलिए इन तीनों कॉमिक्स की समीक्षा कॉमिक्स वार करूंगा ना कि कथानक और चित्रांकन की category में बांट कर।
1. बिल्लू और अजूबा
बिल्लू की कॉमिक्स मैं करीब दो दशक के बाद पढ़ रहा हूं लेकिन ऐसा लगता है कि मानो वक्त मात्र 2 साल आगे बढ़ा हो। कहानी में अगर कोई बदलाव आया है तो बस यह की बिल्लू और जोजी के बीच में एक कॉलेज रोमांस सरीखा प्यार दिखाने की कोशिश की गई है।
2. पिंकी और मरीज
पिंकी की कॉमिक्स का भी तकरीबन यही हाल है। इस कॉमिक्स के मध्य में चाचा चौधरी की एक sponsored कहानी भी है। कुछ कहानियां मेरी याददाश्त के अनुसार 20 साल पहले भी किसी कॉमिक्स में छप चुकी हैं, उन्हीं को और आकर्षक रंग देकर दोबारा इस में छापा गया है।
3. चाचा चौधरी और मिस्टर एक्स
चाचा चौधरी की कॉमिक्स मुझे तीनों नई कॉमिक्स में सबसे ज्यादा निराशाजनक लगी। सर्वप्रथम तो पहली कहानी इमरान हाशमी की मिस्टर एक्स नाम से आई फिल्म के प्रमोशन हेतु लिखी गई है। कहानी बेहद लचर एवं गलतियों से भरी हुई है। जहां एक फ्रेम में साबू इमरान हाशमी के किरदार पर किए गए अल्ट्रा किरणों के वार को अपनी छाती पर रोक लेता है वही अगले ही पन्ने पर वह उन्हीं किरणों को घातक बताकर उनसे बचने के लिए evasive action लेते हुए नजर आता है।
बचपन में चाचा चौधरी के जिन किस्सो को पढ़कर यह लगता था कि उनका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता है, आज उन्हीं में से कुछ कहानी को पढ़कर यह realisation होता है कि कई कहानियों में चाचा चौधरी और हवलदार बहादुर में एक समानता दिखाई देती है और वह है बिल्ली के भाग्य से छींका टूटना। इस कॉमिक्स में डायमंड कॉमिक्स की lazy editing भी दिखाई देती है क्योंकि कई पैनल्स में हिंदी शब्दों के पीछे इंग्लिश संस्करण के शब्द as a shadow print साफ दिखाई देते हैं।
तीनों ही कॉमिक्स का art काफी हद तक 20-25 साल पुरानी कॉमिक्स की तरह ही है। डायमंड कॉमिक्स को पढ़कर मुझे यह भी एहसास हुआ की अगर भारतीय कॉमिक्स प्रकाशन के क्षेत्र में कोई प्रकाशक capitalism के सिद्धांत पर सही मायने में चल रहा है तो वह डायमंड कॉमिक्स है। विज्ञापन और स्पॉन्सर्ड कहानियां की डायमंड कॉमिक्स में कोई कमी नहीं है। अगर यही policy अन्य कोई भी प्रकाशक अपना लेता है तो मुझे पूरा विश्वास है कि कॉमिक्स प्रशंसक उस publisher का जीना मुहाल कर देंगे।
सच देखा जाए तो डायमंड कॉमिक्स अब प्राण साहब वाली डायमंड कॉमिक्स नहीं रह गई है। यह केवल nostalgia पर survive करता हुआ एक outdated product है। बेहद sub standard paper quality पर छापी गई पुरानी कहानियों का एक recycled reprint है डायमंड कॉमिक्स। विज्ञापन देने के बाद भी कॉमिक्स के दाम शायद आज भारतीय कॉमिक्स जगत में सबसे ज्यादा है।
The audience has matured and even the kids in today's time are more mature then the stories of diamond comics.
My Verdict - 1/10 (for all 3)
Let's hope की डायमंड कॉमिक्स द्वारा निकाली गई नई कहानी दिवाली देव डायमंड कॉमिक्स के द्वारा दी गई इस हताशा को कम करने में कामयाब होगी।
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ReplyDeleteसही कहा अब चाचा चौधरी किसी को सजेस्ट करने में भी थोड़ा ऑकवर्ड फील होता है।
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