मुसीबत का खेल...ठहाके फिर हुए फेल
वैसे तो फिर आया बांकेलाल पढ़ने के बाद मेरी हिम्मत नहीं थी कि मैं दोबारा बांकेलाल की कोई नई कॉमिक्स पढ़ सकूं, लेकिन कॉमिक्स का कीड़ा इतना खतरनाक होता है कि जब तक आप प्रीऑर्डर नहीं कर देते, वह आपके दिमाग में काट काट के सर दर्द पैदा करता रहता है। अब अपने इसी सर दर्द का इलाज करने हेतु हमने बांकेलाल के नए कॉमिक्स "बांकेलाल और मुसीबत का खेल" का प्री आर्डर लगा दिया। बस फ्री शिपिंग के चक्कर में और कई preorder लगाने की गलती कर बैठा, नतीजा यह हुआ कि मेरी बांकेलाल की कॉमिक्स काफी देर में आई। कुछ कारणों से मैं भी पिछले 1 माह से घर से बाहर था इसलिए जब घर पहुंचा तो कॉमिक्स के पार्सल इंतजार कर रहे थे। सभी पार्सल एक-एक करके खोलने के बाद मैंने अपने आपको समझाया कि जब 10 घंटे के थका देने वाले सफर को करने के बावजूद मुझमें इतनी हिम्मत है कि मैं कॉमिक्स के पांच पार्सल खोल सकता हूं, तो थोड़ी हिम्मत करके फिर आया बांकेलाल के sequel कॉमिक्स को भी पढ़ सकता हूं।
बहुत प्रयास करने के बाद आखिरकार मैंने इस कॉमिक्स को खत्म किया और मन में विचार आया कि पिछले एक माह से सुप्त अवस्था में पड़े अपने ब्लॉग का पुनः श्री गणेश क्यों ना इसी कॉमिक्स के साथ किया जाए। तो चलिए शुरू करते हैं बांकेलाल बाय मनोज गुप्ता के द्वितीय अंक का dissection।
1. कथानक
फिर आया बांकेलाल से मुझे जो शिकायत थी वह जबरदस्ती बनाए गए चुटकुलों से थी। काफी हद तक इस कॉमिक्स में भी कई जगह व्यंगात्मक नाम बनाने के असफल प्रयत्न किए गए हैं। कथा के आखरी में जिस अस्त्र से दैत्य मजनू मारा जाता है उसका नामकरण किसी भी तरह से justified नहीं है। बांकेलाल की कॉमिक्स में हमेशा ही इस प्रकार के उल जलूल नामों का प्रयोग किया गया है, लेकिन पूर्व में इस्तेमाल किए गए नाम परिस्थिति एवं व्यक्ति या वस्तु विशेष से मैच करते थे। हालांकि मुसीबत का खेल का कथानक फिर आया बांकेलाल से कई गुना बेहतर है लेकिन अभी भी बांकेलाल की कॉमिक्स का वह स्वर्णिम समय वापस लौटता नजर नहीं आ रहा है। पीछे पड़ा भालू और जादुई मुहावरे इत्यादि कॉमिक्स मे जो रचनात्मकता थी वो unmatchable है। वाही जी का लेखन अच्छा है लेकिन एक बार फिर बांकेलाल की कॉमिक्स मुझे ही ही ही ही करके हंसाने में असफल रही है। 32 पेज की सीमा के कारण कहानी last के पेजेस में काफी rushed लगती है। इसी वजह से एक अच्छे कॉन्सेप्ट के साथ पूरा न्याय, लेखक नहीं कर पाया है।
2. चित्रांकन एवं कलरिंग
प्रेम गुनावत जी को मैं शत-शत नमन करता हूं क्योंकि उनका चित्रांकन ऐसा महसूस ही नहीं होने देता की बेदी जी अब बांकेलाल कॉमिक्स नहीं बना सकते हैं। Flat colors का इस्तेमाल बांकेलाल कॉमिक्स के original feel को बरकरार रखता है। चित्रांकन और कलरिंग दोनों ही flawless है। कुल मिलाकर इस aspect पर मैं RCMG को 10/10 दूंगा।
विशेष नोट - मनोज गुप्ता जी के पुत्र ने फेसबुक पर पोस्ट करके इस कॉमिक्स के एक किरदार गजनीचार्य को बहुत प्रमोट किया। वैसे तो बांकेलाल के कॉमिक्स में ऋषि और राक्षसों के नाम और उनके व्यक्तित्व extremely hilarious होते है किन्तु न तो यह किरदार ओरिजिनल है, और ना ही चित्रों में उसके शरीर पर उभारे गए शब्द कहीं से भी हास्य की श्रेणी में आते हैं।
कुल मिलाकर राज कॉमिक्स बाय मनोज गुप्ता द्वारा प्रकाशित यह कॉमिक्स एक बार पढ़ने योग्य है लेकिन बांकेलाल की कॉमिक्स के साथ जिस प्रकार के हास्य कि हम उम्मीद करते हैं उस स्तर का हास्य अभी कॉमिक्स में नहीं उतर पा रहा है।
My Verdict - 5/10
बाँकेलाल की कॉमिक्स से मुझे ज्यादा उम्मीद नहीं रहती है। फिर भी आपका यह लेख आशा जगाता है। अच्छा रहेगा अगर आप बाँकेलाल के पसंदीदा कॉमिक बुक के ऊपर एक लेख लिख सकें। वह पढ़ने में रोचक रहेगा।
ReplyDeletebankelaal ki three best comics k upar plan karta hu
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